
एक लड़की के लिए जीवन में सबसे अहम उसका पति तो बिलकुल नहीं होता। ना ही परिवार और ना ही उसका कैरियर। सबसे अहम वो खुद होती है। उसका अपना आत्म -सम्मान और भरपूर विश्वास खुद पर।
कैरियर बनाने के चक्कर में आप अभी तक सफल नहीं हुए। इसी वजह से आपने अभी तक शादी नहीं की। उम्र भी 35 हो गई है। लेकिन आप एक लम्बे रिश्ते में है और घर वाले इस रिश्ते के खिलाफ है इसलिए इन सब वजहों से इस रिश्ते में भी खिट पिट होने लगी है। ख़ास कर जब ये एक लड़की के साथ हो। आपको क्या लगता है की अब क्या करना चाहिए ?
एक लड़की के लिए ये बात किसी तूफ़ान से कम नहीं है।
कैरियर नहीं बना पाई कोई नहीं लेकिन शादी भी नहीं की ये तो गलत बात है। कम से कम शादी कर लेती २-३ बच्चे कर लेती तो ठीक रहता। समाज की इन बातों का सामना करना और भी मुश्किल हो जाता है उसका जीना।
अगर गलती से भी इस समाज को ये पता लग जाए की किसी लड़के के साथ रिलेशन में है या ऐसा कहे कोई लड़का देख रखा है जो की दूसरी जाती का है तब तो मानो दुनिया का सबसे बड़ा गुनाह ही इस लड़की ने किया है।
इस समाज के अनुसार इन दोनों ही सूरतों में इस लड़की की शादी कहीं भी ,कैसी भी ,किसी दुसरे इंसान के साथ कर देना ही इस दुनिया का आखरी समाधान है।
लेकिन इन सब से कहीं बढ़कर है उस लड़की का फ़ैसला की वो क्या सोचती है अपने बारे में।
कभी कभी उसका मन कहता है जैसा चल रहा है चलने दे। देखते है ज़िन्दगी कहाँ ले जाती है। इतनी दूर आ ही गए है तो थोड़ा सब्र और सही। खुदको इतना समझाकर वो फिर से अपना कैरियर बनाने के रेस में लग जाती है।
लेकिन बात इतनी आसान कहाँ है। दिमाग भी तो है शरीर में। इसकी भी सुननी पड़ती है।
अब दिमाग कहता है अपने परिवार का तो ख्याल कर तेरे साथ साथ ये भी तो कितना कुछ झेल रहा है। लोगों की आदत होती है सीधा मुँह पर कुछ कह नहीं सकते। लेकिन बातों ही बातों में घर वालो को ताना तो मार ही देते है।
परेशान मन कहता है जो होता आया है वही करले। सबकुछ एक तरफ कर कैसी भी शादी। फिर अहम् की बारी आती है जो इनमें से किसी की तरफ नहीं जाता। जिसका कहना है जो हमेशा से सोच रखा है वही करेंगे। कैरियर और अपनी पसंद की शादी।
इतना सब होते सोचते दिन ,महीने और साल निकल गए।
अब खींचतान होने लगी है सभी रिश्तों के बीच। परिवार अपनी मनमानी चाहता है। प्यार अपनी। लेकिन वो लड़की अब कुछ नहीं चाहती। ना कैरियर ,ना परिवार और ना ही प्यार।
अब उसका मन सबकुछ छोड़कर दूर कहीं जाने का है। लेकिन अपनों की फ़िक्र उसे ये भी नहीं करने देती।
सभी कुछ बचाते,बनाते और सँभालते सँभालते वो खुद इतना बिखर गई है की खुदको कैसे संभाले और बनाये नहीं पता। उसे कभी कभी खुद पर तरस आता है। सब कुछ पाने के चक्कर से उसने खुद को ही खो दिया। अब उसे सब मिल भी जाता है तो भी उसे खुद की तलाश हमेशा रहेगी।
ऐसे में सच पूछो तो उसे तलाश किस चीज़ की है इस पर भी उसे डाउट है।
अब उसे प्रार्थनाओं में यकीन होने लगा है। खुदको ईश्वर के हवाले कर दिया है।
कुछ लोग ऐसे होते है जो दुसरो की ख़ुशी में खुश रहना चाहते है। लेकिन ऐसे लोगों से मैं कहना चाहूंगी एक समय की ही बात होती है। फिर आपको खुदकी तलाश करनी पड़ती है की आपकी अपनी ख़ुशी किसमे है। और इसका पता होना बहुत जरुरी होता है।