नई जनरेशन को क्या हो गया है? वे भरोसेमंद और धीरज वाले क्यों नहीं रहे ? क्यों इनका रिश्तो में रहना इतना मुश्किल है ?

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नई जनरेशन को क्या हो गया है? वे भरोसेमंद और धीरज वाले क्यों नहीं रहे ? क्यों इनका रिश्तो में रहना इतना मुश्किल है ?
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अब चल रही जनरेशन और आने वाली जनरेशन का रिश्तों से मानो छत्तीस का आकड़ा है।

एक दिन मैं बस ऐसे ही बैठी कुछ सोच रही थी और मेरे पास मेरे भांजा भांजी खेल रहे थे। उनको देखते हुए मैं हम बहन भाइयो का बचपन याद करने लगी। बहुत अलग है अब का और बीते ३० सालो का बचपन।

अब बचपना तो मानो बच्चो में ख़त्म हो रहा है। बातें तो ऐसी करते है मानो दुनिया की समझ लेके निकले है।

अब माता पिता बच्चो को हर चीज़ अलग अलग दिलाने लगे है। और तो और साथ ही ऐसी हिदायत दी जाती है की “देखो बेटा अब एक दूसरे से लड़ना मत ना ही एक दूसरे की चीज़ो को हाथ लगाना। ये बात संस्कारो तक तो ठीक है लेकिन आगे तक की ज़िन्दगी के लिए ये एक अहम सा खड़ा कर देती है।

अब बच्चे चीज़ो को साझा करना नहीं जानते। बड़े होते होते ऐसे हो जाते है जैसे तूने मेरी चीज़ों को हाथ कैसे लगाया। “

टीनेजर्स की बात करो या 24+ की जनरेशन की तो मानो दुनिया के सबसे समझदार लोग बस यही है। ये मानना सही है की हाँ टेक्नोलॉजी की समझ इन्हे काफी है।
लेकिन , असल ज़िन्दगी को छूते भी नहीं है।

बिना कुछ सोचे समझे ,बिना सर पैर की अक्सर इनकी बातें होती है। लोगों की शकले देखकर जज करना इनका शगल है। फिर भले ही खूबसूरत आवरण में एक गधा ही क्यों ना हो। खूबसूरती इनकी पहली पसंद है। सीरत कैसी भी हो उससे मतलब नहीं।

अपनेआप को बोल्ड दिखाने के लिए हर वो ऐब करते है जो उन्हें नहीं करने चाहिए।सिगरेट ,शराब ,नशा ,सेक्स और भी बहुत कुछ।

एक अजीब सी बकवास और सुनने को मिलती है जैसे की ,अरे तुमने ये सारे ऐब नहीं किए तो अब तक ज़िन्दगी में किया क्या है !

एक लाइन है जिसे लडकियां बहुत बोलती है आज कल ,why should boys have all fun !
इस लाइन को मैने पहली बार एक स्कूटी की कमर्शियल ऐड में सुना था। उस ऐड में इस लाइन का मतलब ये तो बिलकुल नहीं था की अब लडकियां भी लड़को की तरह सभी ऐब करे।”

ये एक पॉजिटिव मस्ज था लेकिन हुक उप कल्चर ने इसका कुछ और ही सेंस निकाल लिया।

हुक उप कल्चर – जितना स्टुपिड नाम है उतना ही स्टुपिड ये आईडिया है। वो कहते है ना हवा है एक बार तो सभी पर से फिरेगी।

पेरेंटिंग स्टाइल – आज के पेरेंट्स जैसे की ,अब क्या करे बच्चे की जींद थी , बच्चा ठहरा ,अब बच्चे खुद फैसले लेने लगे है समझते है ,अब पहले वाला जमाना नहीं रहा ,बच्चा है मार तो सकते नहीं ,गुस्सा भी नहीं कर सकते वरना नाराज हो जाता है ,बहुत जिद्दी हो रहा है ,इन्हे नहीं आता नमस्ते करना या किसी के पाँव छूना कौन करता है, अपने बच्चो की गलतियों पर पर्दा डालना और कहना की बच्चा ही तो , आदि।

इतने बेतुके बहाने है अब के पेरेंट्स के पास की बस पूछो मत। बच्चे तो पैदा कर दिए लेकिन पालन पोषण किया जाता नहीं और कहते फिरते है बहुत जिम्मेदारियां है।ये बराबर के हक़दार है यहाँ मुसीबत खड़ी करने में।

घमंड – ये तो मानो हर दूसरे इंसान में आज मिल ही जाता है। किसी की बातो का जवाब ना देना या सीधा जवाब तो बिलकुल ना देना ,बड़ो की बातो को बेवकूफी भरा समझना ,भोले लोगो को बेवकूफ कहना उसका फायदा उठाना ,छोटे बड़े का लिहाज ना करना ये सब आज की घमंडी जनरेशन है।

ऐसा करके वो अपनेआप को एक और घटिया शब्द से नवाजते है… cool

माना की काफी कुछ बदल गया है। बदलाव होना भी चाहिए। लेकिन आपको नहीं लगता ये बदलाव एक दायरे में हो तो बेहतर है। ऐसा लगता है माहौल अब बद से बदतर हो रहा है।

इन सब बातो के चलते रिश्तो में विश्वास नाम की चीज़ ख़तम हो रही है। पहले खुद लोग दूसरे के साथ विश्वासघात करते है और जब उनके साथ भी यही होता है तो शिकायत लगाते फिरते है।

समझौता – कहने में ही बहुत भारी सा शब्द है। मैने भी इस शब्द की अहमियत धीरे धीरे जानी।

पहले मुझे लगता था समझौता करना ही क्यों है। साफ़ बात करो और बस सब ठीक है फिर।लेकिन समय के साथ काफी कुछ सीखा है।

आज की जनरेशन इतना तो समझ ही गई है की ज़िन्दगी बहुत सारे समझौतों से चलती है। इसलिए रिश्तों की हक़ीक़त अपनाने से डरती है। इन नियमो की कोई डायरी नहीं है। लेकिन आज का युथ रिश्तो को नियमो की एक डायरी की तरह देखता है। जहाँ फिर भावनाओं की कमी रह जाती है और रिश्ते भीखर जाते है।

अब रिश्ते सोसिअल ऍप्स भी नहीं है की चलो अनचाहा ऍप अनइंस्टाल कर दिया जैसा की ये जनरेशन सोचती है।

रिश्तों से कहीं ज़्यादा गहरे समझौते होते है। हर एक समझौते के पीछे लम्बी कहानी होती है। ऐसे ही समझौते नहीं किए जाते।

कुछ सर्वो के अनुसार आज का युथ अकेले ज़िन्दगी काटना चाहता है क्यूंकि वो जानता है जब वो खुद विश्वास के काबिल नहीं तो किसी और पर वो खुद कैसे विश्वास कर सकता है। ये तो tit for tat जैसी स्टोरी हो गई।

आज के युथ में कुछ लोगो की कुछ बातें बहुत अच्छी भी है। जैसे की सोसिअल कायदे कानून ,नियमो का सही गलत पता होना। कुछ लोग जानते है और समझने लगे है औरतो को और लड़कियों को उनकी जरूरतों को अपनाने लगे है। सोसाइटी के छोटे कहे जाने वाले लेकिन बहुत ही महत्वपूर्ण कामो को करने लगे है। रंग ,जाती जैसे भेदभावों को नहीं मानवता को देखने लगे है।

लेकिन ये सिर्फ कुछ ही है। आधे से ज्यादा युथ ने सोसिअल मीडिया की आड़ में अपनी ज़िन्दगी बर्बाद कर रखी है। दुनिया को उस खिड़की से देखते है जिसमे सब नज़र नहीं आता और जो आता है वो दिखावा होता है। इन्हे लगता है शॉर्ट्स की तरह ज़िन्दगी भी ऐसे ही झट-पट काम करती है। धीरज तो जैसे ख़तम ही हो गया है।

आज की जनरेशन को काफी कुछ हाथ में ही मिल रहा है यही वजह है की चीज़ो की कदर नहीं हो रही। आपको चाहिए की ज़िन्दगी को शॉर्ट्स की तरह ना ले। मुसीबतें सभी की ज़िन्दगी में होती है ,आपकी में भी है। जरुरत है तो विश्वास और धीरज सीखने की जो आपको इस असल ज़िन्दगी से मिलेगा फ़ोन या टैब की खिड़की से नहीं।

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