लक्ष्य पाने का रास्ता सीधा तो बिलकुल नहीं होता। ये घुमावदार ऊपर नीचे होता हुआ चलता है।
हम लक्ष्य तक पहुँचने के रास्ते को सीधा समझते है , लेकिन इसके बीच कई पड़ाव होते हैं ,जिन्हे पार करने के बाद ही हम उद्देश्य तक पहुँच सकते हैं।
हमें रास्ता ऐसे सीधा लगता है
लक्ष्य निर्धारित किया……………………………………मंजिल तक पहुँच गए।
जबकि इन पड़ावो को भी पार करना है :-
लक्ष्य निर्धारित किया -आज ऑप्शंस इतने हो गए है की उलझने बस बढ़ ही रही है। ऐसे में सही और एक का चुनाव करना थोड़ा तो मुश्किल है। इसलिए लक्ष्य को पाने के लिए सही लक्ष्य का चुनाव जरुरी है। वरना बातें तो हवा में होती ही रहती है।
शुरुआत की – ये किसी भी लक्ष्य का पहला और बहुत ही महत्वपूर्ण पड़ाव है। एक बार शुरुआत करने पर काफी कुछ नज़र आने लगता है।
संदेह हुआ – ये हम इंसानो की प्रवृति है। इसमें डरने की बात नहीं है। खुद पर विश्वास रखे। अपने लक्ष्य के पड़ावों की जाँच करते चले। खुद को यकीं दिलाये आप कर सकते है। दुनिया की बातो को नाकारा करे। यक़ीनन ये आपका ध्यान बहुत भटकाएगी।
सीखा भी – यहाँ तक आप बने हुए है तो मुबारक हो। आप यकीं माने बहुत बहादुर है। यहाँ तक आपने काफी कुछ सीखा है। जैसे की किसी भी काम की शुरुआत बहुत जरुरी है, आपके आस पास कैसे लोग है ,कोन आपको सहारा देगा और कौन नहीं, अब आगे क्या करना है आदि।
असफलता मिली – घबरा गए ,हार मान रहे हो। लेकिन क्यों ! यही से तो शुरुआत है असली मजे की। हां , असफलता निश्चित है। बिना इसके मुझे नहीं लगता किसी लक्ष्य को पाना ,सच में पाना है। असफलता आपको बताएगी आपको अभी कितने और प्रयास करने है।
अभ्यास किया – दौड़ नहीं सकते तो चलो ,चल नहीं सकते तो रेंगे ,लेकिन लगातार रहे। हम सभी को एक ही पल में शोहरत चाहिए लेकिन असल में ऐसा नहीं होता। कोशिश हमेशा करते रहो। ऐसे में उम्मीद रहेगी।
खोया हुआ महसूस किया – यहाँ भी डरने की जरुरत नहीं है। अक्सर ऐसा तब होगा जब आपको आपके काम का कोई परिणाम ना मिल रहा हो। संदेह होगा , लोगों के ताने मिलेंगे और भी बहुत कुछ। लेकिन आपको यहाँ सब्र करने की जरुरत है बस। मैने सुना भी है और खुद के अनुभव से देखा भी है मेहनत और कोशिशे कभी बेकार नहीं जाती।
समझा – ये वो पड़ाव है जहा आकर अक्सर लोग लोट जाते है। क्यूंकि ये दोहराव होता है। हर उस पड़ाव का जहा से आप आ रहे है। तो लोगो को लगता है क्या है ये ,फिर से वही सब। लेकिन जिसने भी इस पड़ाव को समझ लिया की कंसिस्टेंसी बोरियत हो सकती है लेकिन सफलता की चाबी भी यही है वही आगे निकल सकता है।
संघर्ष किया – इस पड़ाव को आप फाइनल भी कह सकते है। जब आप समझ जाते है असफलता , प्रयास और कंसिस्टेंसी को तो आप इस संघर्ष का सामना करते है और बखूबी करते है।
तब मंज़िल तक पहुंचे।
लक्ष्य को पाना मुश्किल हो सकता है लेकिन नामुमकिन नहीं। आप पीछे मुड़कर देखे ,कितना कुछ मुमकिन कर दिखाया है आपने। स्कूल ,कॉलेज के दिनों में नामुमकिन बहुत कुछ लगता था लेकिन आज खुदको परखे तो पता लगता है वो सिर्फ आपका डर था , हक़ीक़त में सबकुछ मुमकिन है।