सब राजी और सब हासिल।
सब राजी भी हो जाए और सब हासिल भी हो जाए ऐसा संभव है? बहुत ही कम ऐसा होता है।
वैसे तो ये बात लोगों के स्वभावो को देखते हुए रिश्तों में कही गई है लेकिन ज़िन्दगी में कई जगह ये बात आसानी से लागू होती है।
यह बात रिश्तों-नातो या परिचितों में सबको खुश करने के सन्दर्भ में कही गई है – ‘
ढेर सारे जीवित मेंढको को तराजू में तोलना मुश्किल है। एक को बिठाओ तो दूसरा कूद जाएगा। उसी तरह जीवन में हर किसी को राजी रखना भी मुश्किल है। ‘
सभी का स्वभाव अलग होता है। आशाये ,अभिलाषाएं अलग होती है। सबके साथ भी और सबके लिए भी। किसी एक का दोष नहीं ,किसी एक के प्रति भी नहीं। इसलिए कितनी भी कोशिश करले आपके अपनों में कोई ना कोई नाखुश तो होगा ही।
यही बात इच्छाओ पर लागू होती है। ढेर सारी इच्छाओ को एक पलड़े में रखेंगे तो कोई ना कोई इच्छा इस जमघट के बाहर चली ही जायगी। मतलब इच्छा के पूरी होने की संभावनाएं कम है।
लिहाजा मन का संतुलन बनाये रखना जरुरी है। लाख कोशिशों के बाद भी कोई इच्छा पूरी ना हो तो अपना ध्यान नई दिशा की ओर करले।
जीवन की स्थितियाँ भी कुछ इसी तरह परेशान करती है। मन के हिसाब से तो ये बिलकुल नहीं चलती। ये उतार चढ़ाव चलता रहता है। इसलिए जीवन पर इसका असर होगा ही। लेकिन इन परिश्थितियों को ज़्यादा तवज्जों ना दे तो इनका बदलना ज़्यादा परेशान नहीं करता।
ज़िन्दगी का तो दस्तूर है बदलते रहना। स्थिति भी ऊपर निचे होती रहती है। मार्ग बदलते रहते है। लेकिन तुरंत ही अपनी सोच कारगर स्थिति में बदल ले।
दूसरी बड़ी बात परिवर्तन प्रकृति का नियम है। जितना जल्दी इस बात को समझेंगे और स्वीकारेंगे उतना बेहतर है। ये किसी के भी साथ एकसा व्यवहार नहीं करती।
इन विविधताओं में जीवन के सबक निहित है। जो हासिल हो , तो अच्छा। जो छूट जाए , वो नए प्रयास सिखाये या सबक बन जाए।
ये एक newspaper आर्टिकल है।
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