आप अपने बारे में कितना जानते है ?

एक बार को ये सवाल खुद से पूछने पर अजीब लगेगा लेकिन इससे भी ज्यादा अजीब इसका जवाब देना है।

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अपने बारे में जानना सबको बहुत पसंद है। हम रोज़मर्रा की भागदौड़ और तनावपूर्ण प्रक्रियाओं में खुद को नज़रअंदाज़ कर सकते हैं। हम यह भी भूल जाते हैं कि हमें क्या पसंद है, क्या हमें खुश करता है। मुझे लगता है कि हमारे पास खुद को खोजने का पर्याप्त मौका नहीं है। मुझे लगता है कि ऐसी कई अलग-अलग चीज़ें हैं जिन्हें हम आज़माते नहीं हैं, करने का मौक़ा नहीं पाते हैं और खुद से नहीं पूछते हैं।
उदाहरण के लिए, ऐसा खाना जो आपने कभी नहीं खाया हो, वह वास्तव में आपका पसंदीदा खाना हो सकता है। या ऐसी जगह जहाँ आपको कभी जाने का मौका नहीं मिला हो, वह वास्तव में आपकी पसंदीदा जगह हो सकती है। हो सकता है कि किसी ने आपको कभी कोई उपहार न दिया हो। हो सकता है कि किसी से उपहार पाना ही वह चीज़ हो जो आपको सबसे ज़्यादा खुश करे।

एक बार को ये सवाल खुद से पूछने पर अजीब लगेगा लेकिन इससे भी ज्यादा अजीब इसका जवाब देना है।
हम सभी अपनी रोजाना की ज़िन्दगी में जो कुछ करते है उसी को अपनी पहचान भी बना लेते है या यु कहे खुद -ब -खुद वो पहचान बन जाती है।

खुद का एक अनुभव शेयर करती हु। एक बार मैं और मेरा परिवार हमेशा की तरह साथ बैठकर खाना खा रहे थे। मेरी छोटी बहन ने मम्मी से मेरे बारे में कहा “आपकी ये बड़ी बेटी एक दम गाये है, बहुत ही मासूम। फायदा उठा ले कोई भी।” मैने कुछ नहीं कहा मैं बस सुन रही थी। मम्मी ने अपना खाना ख़त्म कर कहा, किसने कहा की ये गाये है या भोली है। ये वो है जब तक परवाह कर रही है तो कर रही है। वरना इसे तो क्या इसके देवताओ को भी फर्क नहीं पड़ता की कौन कहा है और क्या कर रहा है।

मुझे मम्मी की ये बात सुनकर बहुत अचम्भा आया। और सच कहु तो बहुत हसीं भी आई क्यूंकि मम्मी ने एक दम सही कहा था। मुझे लगने लगा था ये जिम्मेदारियों का दबाव है, हालांकि ये बात मैने कभी जाहिर नहीं होने दी। गुस्सा आता था कई बार लेकिन बस गुस्से को पी कर रह जाती थी।

जिम्मेदारियों के चलते बहुत बार मन होता की कुछ समय को बस भाग जाऊ कहीं दूर या खूब घुमु। लेकिन हक़ीक़त ये है की मैं शांत बैठना चाहती हु। खुद को सुनना चाहती हु।

मुझे परिवार में रहना उनके लिए बहुत कुछ करना पसंद है। सबको लगता है मैं परिवार के बगैर कहीं जाना पसंद नहीं करती। लेकिन ट्रेवल मैं अकेले करना चाहती हु और यही मुझे पसंद है।

मुझे अपने साथ के सभी रिश्ते पसंद है और यही मेरा कम्फर्ट जोन भी है। मैं जानती हु मेरा मेरे कम्फर्ट जोन से बाहर जाना इन रिश्तों में दरार डालने जैसा है। तसल्ली इस बात की है जब कभी ऐसा दिन आया तो मेरी माँ मेरे इस फैसले में साथ है। क्यूंकि वो ये सब जानती है, मुझसे भी ज्यादा।

मुझे लगता था नई चीज़े सीखना मेरे बस की बात नहीं। लेकिन बीते २-३ महीनो में मैने बहुत कुछ नया सीखा है और अब मुझे इसमें मजा आने लगा है।

अब मुझे लगता है मैं अपने बारे में बहुत कम जानती हु। क्यूंकि जितना अब तक जाना ,काफी कुछ जानना बाकी है।

पढ़ा था मैने ,मौत एक दिन सभी को आनी है लेकिन फिर भी हम सब ऐसे जीते है जैसे हम अमर है। अपनी ख्वाइशें कल पर टालते चले जाते है। आज वही कल है जिस कल की चिंता हमें कल थी।

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