जब ज़िन्दगी की ख्वाइशे भी नाखुश करने लगे तब क्या करना चाहिए ?

आपका जीवन सरलता चाह रहा है।

image of hindi article What should one do when even the desires of life start making one unhappy? जब ज़िन्दगी की ख्वाइशे भी नाखुश करने लगे तब क्या करना चाहिए ?
image of hindi article What should one do when even the desires of life start making one unhappy? जब ज़िन्दगी की ख्वाइशे भी नाखुश करने लगे तब क्या करना चाहिए ?

जब ज़िन्दगी की ख्वाइशे भी नाखुश करने लगे तब क्या करना चाहिए ?
आपका जीवन सरलता चाह रहा है।

पहले जब कभी मैं कही भी पढ़ा करती थी जैसे आपको इतनी उम्र में कामयाबी हासिल कर लेनी चाहिए ,इतनी उम्र में प्यार ,फिर शादी ,फिर बच्चे और फिर रिटायरमेंट ,इसके बाद आपको अपनी ज़िन्दगी सुकून से कहीं भी शान्ति से घूमते हुए बिता देनी चाहिए। उस वक़्त कभी गहराई से सोचा नहीं इस बारे में। अब महसूस होता है ऐसा क्यों कहते है।

क्यूंकि हम सभी की ज़िन्दगी में एक ऐसा मोड़ भी आता है जब तमाम क़ीमती लगने वाली चीज़ें बेवजह ही मन से उतरने लगती है हर वो चीज़ और और वो अज़ीज़ लगने वाला इंसान नामंजूर लगने लगता है और दिल सिर्फ खाली वक़्त के तलाश में भटकने लगता है।

साल भर पहले की बात है एक बार अपनी इस तरह की भावनाये मैने किसी के सामने ज़ाहिर कर दी तो उस इंसान का कहना था की मैं अपनी जिम्मेदारियों से भागने की बात कर रही हु। उस वक़्त मुझे कुछ समझ नहीं आया लेकिन लगा शायद वही बात सच थी। लेकिन नहीं। मैने ये नहीं कहा था की मैं सबकुछ छोड़कर पहाड़ो में रहने लग जाऊ या कभी वापस ना आउ या मुझे अपने घर -परिवार की परवाह नहीं। नहीं ये मेरा मतलब बिलकुल नहीं था। और होना भी नहीं चाहिए।

बात भले ही रोजाना ऑफिस जाने वाले आदमी-औरत की हो या घर पर रहने वाली ग्रहणी की या फिर घर से काम करने वाले किसी भी इंसान की हो एक समय पर खाली वक़्त की तलाश सभी को होती है। ये खाली वक़्त अपनी रोजाना की ज़िन्दगी से छुट्टी लेने जैसा है। ये वक़्त कितना भी हो सकता है एक दिन ,एक सप्ताह या फिर एक महीना।

एक आदमी जात के लिए अपने परिवार से दूर वक़्त बिताने जाना सभी को गवारा लगता है। लेकिन जब एक लड़की या एक बेटी या किसी की प्रेमिका या किसी की बीवी इस वक़्त को मांगने का इजहार करती है तो पहले 70 सवालों के जवाब उसे देने होते है और फिर भी हाँ की गुंजाइश बहुत कम मिलती है। परवाह अपनी जगह है लेकिन बंदिशे ,ये सही नहीं है।

मैं अपनी बताती हु। अपनी लाइफ का एक बड़ा हिस्सा मैने मन चाही सफलता पाने के लिए चिंता में निकाल दिया। और आज जब पीछे मूड कर देखती हु तो अफ़सोस होता है।

जब ज़िन्दगी की तमाम जरूरतों की ख्वाइश थकने लगे। हमेशा की तरह परिवार की परवाह करने का मन नहीं हो ,व्यस्तता के दौरान दो पल बस अकेले बैठने का मन करे ,काम तो बहुत हो लेकिन कुछ पल दिल इन सब से दूर जाने को कहे ,लम्बी यात्रा के मोके हो लेकिन दिल सिर्फ सुकून से बैठ कर किताब पढ़ने को कहे ,जब लगे की सब कुछ बहुत आसान है लेकिन ज़िन्दगी को पेचीदा हमने बना रखा है तो इन सब को आसान किए जाने की जरुरत है।

इन तमाम इशारों को अगर आप महसूस कर रहे है तो ध्यान दीजिये आपका मन चाहता है की अब ज़िन्दगी आसान हो बस।

Leave a Comment