हमारी जिंदगी में मोबाइल का क्या प्रभाव पड़ा?
मोबाइल छोटा सा उपकरण है। इसे बड़ा सम्भावनावान माना गया है की यह आवाज़ और लिखित बातचीत ही नहीं कराता ,संदेश देने ,समय बताने ,जानकारियों को तलाशने ,यहाँ तक की बौद्धिक विकास में भी मददगार है। यह हिसाब भी रखता है और निजी जानकारियों का भण्डार भी इसमें सहेजा जा सकता है। जो इतना अच्छा दोस्त था ,वो अचानक हर तरह से दुश्मन क्यों बनने लगा है ?
इसने लोगों की जगह लेली है। इस एक ने सबको अकेला कर दिया है। यह साथ है ,तो किसी और साथ की जरुरत नहीं है।
इस पर भरोसा भी अपनों से ज़्यादा है। माता -पिता ,बड़े-बुजुर्ग कोई सलाह दें ,तो मंजूर नहीं। इस उपकरण के जरिये कोई सलाह मिले ,फिर भले उससे नुक्सान ही क्यों ना हो ,उस पर तुरंत अमल हो जायेगा ,वो भी बिना दूसरी बार सोचे। यही हाल लोगों का है। अपने घर -परिवार में लोगो को जानने -समझने ,उनसे संवाद करने का मोबाइल के दीवानों के पास समय नहीं है ,लेकिन घंटो किसी अनजान से बतियाते रहेंगे।
इस उपकरण के जरिये धोखाधड़ी के किस्सों की गाथाये अनंत होती जा रही है। ठगी के शिकार हो जायेंगे लेकिन उस ठगी की इस जड़ से दूरियां नहीं बनाएंगे। नींद खो रही है ,इयरफोन से श्रवण शक्ति कम हो रही है ,इस उपकरण के वाहन चालन के समय इस्तेमाल से दुर्घटनाये हो रही है ,लेकिन यह उपयोगकर्ता का दोष क़रार दिया जा रहा है। सही भी है ,लेकिन कारण तो उपकरण ही है।
गलतियां रिकॉर्ड हो रही है ,प्रचार के लिए सुधार के लिए नहीं। कहीं भी ,कभी भी बात करने की सुविधा ने तहजीब ख़त्म कर दी है। निजी बातें बड़े आराम से सार्वजनिक हो जाती है। छोटा सा उपकरण ,इसलिए क्षति पहुंचा रहा है ,क्यूंकि यह बेलगाम है। हाथ में दूर की दुनिया समां देता है ,नजदीकी दुनिया छीनकर ?
मोबाइल का आविष्कार लोगों के बीच दूरियाँ कम कर ,रिश्तों में नज़दीकियां लाना था। अब ये सुविधा तो खूब देता है लेकिन लोगों की भावनाओं के मामले में ये सिर्फ एक उपकरण है इससे ज़्यादा कुछ नहीं।