
शिक्षा का असली उद्देश्य जाने बगैर ही ना जाने कब से हम इसे पढ़ते आ रहे है। पढ़ना और उसे आत्मसात करना दोनों में बेहद फर्क है।
हम अपनी स्कूली शिक्षा में पढ़ते है की शिक्षा ही सबकुछ है। खुद मैने यही पढ़ा है। बड़े बड़े निबंध भी यही कहते है शिक्षा ही इस दुनिया का उद्धार है लेकिन अब डाउट होता है की क्या सच में यही बात है ?
स्कूल के दिनों में जब समझ आने लगी थी और घर या बाहर कोई झगड़ा होता जिसमे लोगों की समझ का अभाव होता तो मैं सोचती थी सब पढाई ना करने का खेल है। पढ़े लिखे लोग ऐसा नहीं करते ,वो बात को समझते है।
लेकिन अब के हालातों को देखकर लगता है पढ़े लिखे लोग ,कम पढ़े लिखे या अनपढ़ से भी कहीं ज़्यादा खराब सोच रखते है और इन्हे गवाँर कहना गवारों की तोहिन करने जैसा है।
खुद मेरे रिश्तेदारों में ऐसे लोग है जो बाहर विदेशों (अमेरिका ,ऑस्ट्रेलिया ,नूज़ीलैण्ड) में काफी पैसों की जॉब करते है। अच्छा कमाते है लेकिन सोच -समझ के मामले में उनकी सोच उनके घुटनों से भी नीचे है।
लोग कहते है भाई बाहर सब चलता है ,यहाँ नहीं चलता। क्यों भाई ऐसा क्या है जो यहाँ नहीं चलता ,बाहर का पैसा यहाँ नहीं चलता इसके आलावा बताओ।
अब शिक्षा तो सबको मिल रही है ,फ्री का ज्ञान जो बटने लगा है लेकिन इंसानो की कमी हो गई है। शिक्षा पाना मुश्किल काम नहीं है। लेकिन इस शिक्षा का सही उपयोग करने वाले सही इंसान की तलाश बहुत मुश्किल है।
फलाना इंसान बहुत अच्छा था। बहुत मदद करता था लोगो की ऐसा कहते है अक्सर लोग। लेकिन खुद इन बोलने वालो को किसने रोका है।
सोचने की शक्ति सिर्फ इंसानो के पास है लेकिन समझने के लिए काफी सोचना पड़ता है इसलिए हम इंसानो ने सोचना बंद कर दिया है। अब ये दिमाग तभी चलता है जब खुद की बारी आती है वरना तो कोई फ़र्क नहीं पड़ता।
कैलिफोर्निया में लगी आग कुछ ऐसे ही हालात बताती है। जब साइंटिस्ट्स चिल्ला चिल्ला के लोगों को और दुनिया को आगाह कर रहे थे तब किसी ने नहीं सुनी। अब जब लोगों पर मार पड़ी तो नतीजा सामने है। पहले सोर्सेज ना होने के बहाने थे। अब सब कुछ है लेकिन दिमाग ने सोचना और समझना बंद कर दिया है।
रेप केसेस में हमेशा कपड़ो का बहाना दिया जाता था और अब भी देते है लेकिन अब समझ आता है शिक्षा से इसका कोई लेना देना नहीं है क्यूंकि कुछ लोगों की पैदाइश ही खराब होती है।
कुछ ऐसे भी है जिन्होंने शिक्षा इतनी पा ली है की वो इसकी आड़ में बुरे काम करने लगे है।
कुल मिलाकर शिक्षा एक रटे हुए तोते की जुबानी जैसा है, शिक्षा सबके पास है लेकिन इसे समझने वाले बहुत कम। इसका नतीजा निकला की शिक्षा लोगों को इंसान नहीं बना पाई। जब उद्देश्य ही सही नहीं हो तो परिणाम सही कैसे मिलेगा।
शिक्षा का सही उपयोग ये इतना मुश्किल भी नहीं है। जैसे की रोजाना की ज़िन्दगी में भी लोगो की मदद कर देना ,अपनों को और लोगों को शिक्षा का सही उद्देश्य सिखाये। सिर्फ कुछ अफवाहों और धोखेबाजों को इग्नोर कर फिर से मदद की जा सकती है। जरुरत नहीं है मदद का बैनर या झंडा लेकर दौड़ने की। जरुरत है तो बस अपने ही घर से ,पड़ोस से और मोहल्ले से शुरुआत करने की। आपको मिसाल बनते देरी नहीं लगेगी।
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