
वक़्त के साथ सब्र का एहसास कैसा होता है ? क्यों आपको चीज़ो को वैसे ही रहने देना चाहिए ?
क्या कभी आपके साथ ऐसा हुआ है जब आपने सब कुछ छोड़कर सब्र को अपनाया हो। आपके दिल और दिमाग में कितने ही युद्ध क्यों ना हुए हो लेकिन फिर भी आपने बिना किसी की परवाह किए बस वक़्त के साथ सब्र को अपनाया हो। और सबसे मज़े की बात इसका परिणाम क्या निकला ? ये मुझे कमेंट करके जरूर बताये। तब तक मेरा अनुभव शेयर करती हु।
दो साल पहले तक मैंने भी औरो की तरह सरकारी नौकरी की तैयारी में रात दिन एक कर रखे थे। चिंताओं के साथ सिर्फ किताबे ही आस पास होती थी। हसना बहुत ही कम होता था। मुझे एक अजीब सी बात घर कर गई थी की खुश नहीं होना है वरना खुशियों को आग लग जाती है।
इन सब बातों के साथ मैने एक्साम्स दिए और उनमे से दो एग्जाम में मैं पास भी हो गई। बाकी सभी की तरह मुझे भी बहुत सी कॉल्स आई और बधाइयां दी गई। लेकिन जोइनिंग के मिलने से पहले सरकार पलट गई और पेपर लीक होने की अफवाहों के साथ और कुछ गड़बड़ियों के साथ सब कुछ रोक दिया गया।
मुझे एक सदमा सा लगा। मुझे ज्यादा फर्क इसलिए पड़ा की माँ और बाकी सभी बहुत परेशान हुए। पापा को गुजरे भी ज्यादा समय नहीं हुआ था और फिर वही शादी ब्याह की बातें।
मैं कुछ दिन मौन रही। मेरी आदत है ये खुद को ठीक करने से पहले मैं चुप हो जाती हु। खुद से लड़ती हु और फिर उठ खड़ी होती हु।
हर बार मैं फिर से लड़ने के लिए खड़ी होती हु लेकिन इस बार मैं खड़ी तो हुई लेकिन लड़ने के लिए नहीं खुद को प्यार करने के लिए।
कुछ ने मुझे किनारे पर आकर डूबना कहा तो किसी ने बेवकूफ कहा लेकिन मुझपे किसी की बातों का कोई फर्क नहीं पड़ा। बीते साल मैने खुद को बहुत प्यार दिया। आस पास की ख़ूबसूरती और छोटी छोटी लेकिन कीमती बहुत सारी खुशियां बटोरी। ईश्वर को अब तक के लिए और आगे के लिए शुक्रिया कहा। परिवार ने हमेशा की तरह यहाँ भी मुझे सहारा दिया।
जब भी बीते दिनों की या आने वाले दिनों की चिंता सताती तो एक गहरी साँस लेती और साँसे छोड़ते हुए ईश्वर को अपना सबकुछ सौंप देती। बिना उस महान शक्ति के मैं यहाँ तक भी नहीं पहुँच पाती। उसके प्रति हमेशा कृतज्ञ रही हु।
अभी हाल ही मैं उस एग्जाम को लेकर सरकार के बिच चर्चा हुई और फिर से रिजल्ट निकाला है। मेरे करीबी एक दोस्त ने मुझे रिजल्ट देखने को कहा। मैने उसे हस्ते हुए कहा शुक्रगुजार होउंगी ईश्वर का जिस पर भी उसने अपनी नेमत बरसाई है। और रिजल्ट देखा तो फाइनल में मेरा भी नाम है।
उस पल मुझे अजीब सी खुशी हुई। ना ज्यादा और ना कम। लगा जैसे हलकी ठण्ड के बीच किसी ने मुझे बेहद ही खूबसूरत और नरमाहट भरा कम्बल उढ़ा दिया हो।
क्यों ,कैसे ,क्या अपना सब कुछ मैने वक़्त के हवाले कर दिया था। अपनों की खूब सेवा की। दुःख में कभी कभी रोना भी पड़ा लेकिन सब कुछ बेहद खूबसूरत रहा क्यूंकि मैने बीते सालो में वक़्त के साथ सब्र करना सीखा। सीखा ईश्वर के प्रति कृतग्यता कितनी खूबसूरत चीज़ है। सीखा की कभी कभी चीज़ों को वक़्त के हाल पर छोड़ देना चाहिए। सीखा की सब कुछ हमारे हाथ में नहीं होता।
सीखा की मेरे पास तो हमेशा से सबकुछ है। सिर्फ एक परमानेंट नौकरी ना होने के कारण ज़िन्दगी को नर्क बना रखा था मैने। जबकि खुशियां तो हमेशा से मेरे पास ही थी। सीखा की प्यार देना ही सबकुछ है। मानवता ही सबकुछ है। सीखा की हम सभी जो भी ज़िंदा है इस धरती पर बहुत भाग्यशाली हैं।
मुझे नहीं पता अब भी ये नौकरी फाइनली मुझे मिलेगी या नहीं लेकिन इसके बिना भी मेरी ज़िन्दगी में कोई कमी नहीं है। सबकुछ है मेरे पास। अपनों का साथ है और ईश्वर का आशीर्वाद है हर परेशानी से लड़ने के लिए।
मैं आपसे पूछती हु क्या जॉब ही सबकुछ है। अक्सर हम कहते है एक बार नौकरी लग जाए खूब घूमेंगे। एक बार नौकरी लग जाए खूब खुश रहेंगे। क्या सच में ऐसा होगा। कल किसने देखा है ? हम रोजाना की अलार्म भर कर सोते है लेकिन कितने ही लोग अगला सूरज नहीं देख पाते। हमने देखा। शुक्र है ईश्वर का।
मेरे कहने का उद्देश्य ईश्वर के नाम की माला जपना नहीं है। ख़ुशी के साथ सभी काम करना है। ना की पहले काम फिर ख़ुशी। ये बात सच है की खुश रहो काम बनते चले जाएंगे। कोई भी परेशानी हमारी ज़िन्दगी नहीं है , वो बस हमारी ज़िन्दगी का महज़ एक बहुत ही छोटा सा हिस्सा है। ये जीवन ही अपने आप में एक आशीर्वाद है।
1 thought on “वक़्त के साथ सब्र का एहसास कैसा होता है ? क्यों आपको चीज़ो को वैसे ही रहने देना चाहिए ?”