
रिश्तों की थकान ,मुझे कभी शब्द नहीं मिले की इस बात को कैसे बयां किया जाए। फिर एक मूवी का डायलाग सुना की “रिश्तों के टूटने की कोई एक वजह नहीं होती ,ये तो कई अधूरी लड़ाइयों की थकान होती है। “बहुत गहरी बात है कोई समझे तो।
कभी कभी सुनने में आता है इतना लम्बा रिलेशन था फिर ना जाने क्यों टूट गया ,शादी तो बहुत धूम धाम से हुई थी फिर अचानक रिश्ता क्यों टूट गया ,शुरुआत में तो सब सही था फिर पता नहीं कैसे रिश्ता टूट गया।
पहली बात अचानक से कुछ नहीं होता। हर चीज़ की एक प्रोसेस होती है और क्यूंकि हमारा हमेशा से ही ध्यान परिणाम पर रहता है इसलिए उस प्रोसेस को नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है जबकि ज़िन्दगी का सार इस प्रोसेस में ही होता है ना की परिणाम में।
तभी तो कहा जाता है की ज़िन्दगी एक सफ़र है ,गंतव्य नहीं।
कभी रोड पर खड़े होकर बिना किसी के साथ ,बिना किसी फ़ोन के एक घंटे किसी का इन्तजार करो लगेगा जैसे ना जाने कब से इन्तजार कर रहे है और सामने वाला आपको बस 5 मिनट और कह कह के इन्तजार कराये जा रहा हो तो ऐसे में आपका रिएक्शन कैसा होगा ? आपको चिढ़ होगी ,गुस्सा आयेगा ,आप अब उसपर पहले से कम विश्वास करेंगे।
रिश्तों में भी बिलकुल यही बात होती है। किसी बात को लेकर एक बार बहस हो गई ,2 बार हो गई या 4 बार हो गई चलता है लेकिन साल के 12 महीनों में 12 बार उन बातों पर बहस हो तो नतीजा एक सफल रिश्ता नहीं निकलता।
दूसरी बात रिश्तों में अनगिनत बातें मायने रखती है। सिर्फ 2 लोगों के बीच की बात नहीं होती। इन्ही बातो का ख्याल करने में कुछ रिश्ते लम्बे चले भी जाते है लेकिन बार बार वही बहस और लड़ाइयों का जब कोई इलाज नहीं दिखता तो यही लम्बे रिश्ते फिर टूट जाते हैं और लोगों को सब अचानक नज़र आता है। ये अचानक नहीं था।
कभी कभी रिश्तों में फैसले लेने में भी चूक हो जाती है। जब इंसान ही सही ना हो तो कोई भी कैसा भी रिश्ता कैसे टिक सकता है।
तीसरी बात जनरेशन गैप और समझ का अंतर। एक अच्छा खासे परिपक्व इंसान के साथ एक immature इंसान का रिश्ता जोड़ दिया जाए तो भला अब ये रिश्ता कैसे निभेगा। एक निभाये ही जाए और दूसरा परवाह भी ना करे।
शादी -शुदा या बिना शादी -शुदा के रिश्ते में रह रहे लम्बे समय की परवाह ,बच्चो की परवाह , घर परिवार की परवाह ,लोगों की परवाह ,खुद के द्वारा किए गए कई वादों की परवाह ,सामने वाले के एहसानो की परवाह और भी ना जाने किन किन बातों की परवाह की वजह से भी जहरीले रिश्तों को निभाया जाता है फिर भले खुद को जान से मार देना ही बेहतर लगे लेकिन रिश्तों को तोड़ने से पहले ना तोड़ने की पूरी कोशिश की जाती है। तो भला ये अचानक कैसे हो सकता है !
काम की थकान इंसान फिर भी झेल लेता है लेकिन रिश्तों की थकान इंसान के घुटने टेक देती है। ये इंसान को मानसिक और शारीरिक दोनों तरहों से तोड़ देती है।
लोग कहते है रिश्ते निभाने मुश्किल होते है लेकिन तोड़ने आसान। कुछ लोगों के लिए ये उल्टा है। इनके लिए अपने पसंदीदा रिश्तो को निभाना आसान है लेकिन उनका टूटना इनके लिए साँसे टूटने जैसा होता है। बहुत तकलीफ होती है इन्हे।
आज हम इतने एडवांस हो गए है की हर इंसान के लिए उसकी अपनी समझदारी मायने रखती है। इसे समझ कहलो ,अहम कहलो या कुछ भी लेकिन अब बातो का आदान प्रदान इतनी तेजी से होता है की इन सब में समझ और समझना किसी को नहीं है। सबको अपनी बात प्यारी लगती है।
अब इस रील की दुनिया ने और भी बातें बिगाड़ दी है। ध्यान लगाने की बजाये ध्यान भटकाना ज्यादा होता है।
सच पूछो तो इसका कोई गणित नहीं है की ऐसे करो ,ये फार्मूला लगाओ ,वैसे करो तब आपका रिश्ता अच्छा होगा। बिलकुल नहीं। अनुभव अपनी जगह मायने रखता है लेकिन ये समय मांगता है। आप समय दे सकते है तो अनुभव भी लीजिये ,समझिये बातों की बारीकियों को शायद कुछ बात बन जाए।
आपका रिश्ता आप ही बेहतर जानते है। आपने क्या खोया और क्या पाया ये सिर्फ आप जानते है। सलाह -मशविरा सभी देते है लेकिन आखरी फैसला सिर्फ आपका होना चाहिए और इससे आप पूरी तरह सहमत भी हो।
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