एक आर्टिकल पढ़ा की ज़िन्दगी में सबसे ज्यादा क्या मायने रखता है !
जवाब है रिश्ते।
वैसे तो सभी की अपनी समझ होती है और मायने भी रखती है क्यूंकि वो उनका अपना अनुभव होता है। और हम सभी के अलग अलग अनुभव होते है।
जब ये आर्टिकल पढ़ा तो मैं भी इस बात पर सहमत हुई की हाँ सच में रिश्ते बहुत मायने रखते है। जब भी मैं अपनों की वजह से बहुत गुस्सा होती हु, जो की अक्सर होता है, तो मुझे लगता है सही कहते है लोग खुद पर ध्यान दो भाड़ में गए सब लोग।
वही दूसरी तरफ बाकी दिनों में मैं सिर्फ अपने परिवार के लिए जीती हु। लड़ाई झगड़ो को भूलकर जो कुछ कर सकती हु उनके लिए सब करती हु। हक़ीक़त में हम सभी की ज़िन्दगी हमारे घर परिवार के चारो तरफ ही होती है।
ज़िन्दगी का हर काम उठना, बैठना , सोना , खाना , पीना , हसना , रोना सबकुछ इन्ही के साथ होता है और इन्ही से जुड़ा भी होता है।
एक दूसरे के सहारे इस दुनिया को देखने और समझने की कोशिश भी करते है।
मैने बहुत बार अपने परिवार को पूरी तरह इग्नोर कर स्वार्थी बनने की कोशिश भी की लेकिन अपने जिद्दी स्वभाव के चलते इसमें नाकामयाब रही।
कभी कभी ऐसे पल भी आये जब यही लोग आपके खिलाफ हो जाते है तो मानो ज़िन्दगी में कुछ बचता नहीं है लेकिन समय के साथ समझ और ताक़त आ जाती है सबकुछ संभालने की।
मुझे अक्सर लोग कहते है परिवार के रहते आप कुछ बड़ा हासिल नहीं कर पाई। ये सच है मैने बहुत सी ओप्पोर्तुनिटीज़ अपने परिवार के चलते गवाई है। वजह परिवार बना लेकिन डिसिशन तो मेरा था बस यही सोचकर खुदको शांत कर लेती हु। इस बात का अफ़सोस हमेशा झगडे के दौरान होता है बाकी दिनों में नहीं।
कहते है इंसान गुस्से में कुछ भी कहता है। लेकिन मैने खुद पर ये बात आजमाई है की गुस्से में इंसान अपने अवचेतन मन की बातें कहता है। बातें जो उसके जहन में दबी होती है और चोट लगने पर बाहर आती है।
रिश्ते सोने जैसे होते है जितना पुराना उतना मजबूत और महंगा। क्यूंकि नए रिश्तो को भी समय की कसौटी से गुजरना ही पड़ेगा तभी उसका पता चलता है।इसलिए रिश्ते तोडना भी बहुतो के लिए बेहद मुश्किल होता है। बिलकुल अपनी साँसों के हिस्से कर देने जैसा और फिर ऐतबार नहीं रह जाता नयो पर।
एक बात मुझे सोचने पर मजबूर करती है की क्या सच में ऐसा कोई है जिसने बिना कुछ गवाए अपने परिवार को सभी रिश्तो को भी कायम रखा हो और खुदको भी पा लिया हो बिना किसी पछतावे के ?
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