मत बताया करो।
अपने बॉयफ्रेंड को सबकुछ बताना ही रिश्ता निभाना नहीं होता।
आपको क्या लगता है असा करके रिश्ता मजबूत बनता है। बनता होगा लेकिन सिर्फ आपकी तरफ से उसकी तरफ से तो उसको अब भी आप पर शक है। शक है की आप उसे सबकुछ नहीं बताती। शक है आपका कहीं और भी चक्कर चल रहा है। शक है की कोई लड़की इतनी साफ़ और सच्ची कैसे हो सकती है वो भी आज के समय में।
आप ज्यादा कुछ नहीं सिर्फ अपने घर की कुछ बातें ,जो भी आप रेगुलर बताती है ,ना बताये और इन्तजार करे। फिर बातों ही बातो में जब आप उन दिनों का भी जिक्र करोगे तो वो बॉयफ्रेंड जरूर कहेगा की तूने ये बात तो नहीं बताई। फिर आप कहना ऐसा कुछ बताने का था नहीं और वो कहेगा तुम मुझसे कबसे बातें छुपाने लग गई। बस यही लड़ाई शुरू हो जाती है।
इस चीज़ को मैं कहूँगी की लड़किया अपने आप को खुली किताब की तरह खुद को अपने बॉयफ्रेंड के सामने पेश ना करे तो ही बेहतर है। आत्म सम्मान का दायरा बना रहता है।क्यूंकि जब ये टूटता है तो रिश्तो में पहले वाली बात नहीं रह जाती।
ऐसे में कब वो आप पर हावी होने लग जाएगा आपको पता भी नहीं चलेगा। कब वो आपके आत्मा -सम्मान के दायरे में घुस जायेगा आपको भनक तक नहीं पड़ेगी।
रिश्तों में बातें होनी चाहिए लेकिन काम की। बेकाम की बातें जैसे पापा ने ये कहा ,मम्मी मेरे लिए ये लाइ ,मेरी बहन को डेट है तो मैं काम कर रही हु ,भाई तो ऑफिस गया है जब आता है तब आता है ये वो आदि।
कुछ किस्से तो मैने ये भी सुने है की अपनी बैंक डिटेल्स तक लड़कियों ने अपने बॉयफ्रेंड को बता रखी है क्यूंकि बॉयफ्रेंड ने ज्यादा सेफ्टी का वादा किया है और फिर उसने एक दिन पैसे निकाले और फरार।
मेरे कहने का मतलब है ऐसी खुली किताब मत बनो की एक दिन वो आपका फायदा उठा जाए और छोड़ जाए। ऐसे रिश्तो में निभ जाए तो अच्छा वरना तो पूरा परिवार खतरे में आजाता है।
कहते है रिश्तो में छोटी छोटी बाते मायने रखती है। लेकिन आपका ये गर्लफ्रेंड -बॉयफ्रेंड वाला रिश्ता उस लाइन को नहीं छूता जहा बारीक बातें मायने रखती है।
ऐसे रिश्तों में कमी देखी है मैने। एक दिन आता है जब झगडे में बॉयफ्रेंड आपको काफी कुछ कह देता है। इतना की आपके आत्मा -सम्मान को ठेश पहुंची हो। उस दिन आपको अपना सदियों पुराना रिश्ता बेनकाब नज़र आता है। हर वो बात ,हर वो लम्हा खोकला नज़र आता है। सबकुछ बेजान नज़र आने लगता है। लगता है मानो अब तक आप सो रही थी और आज जागी है गहरी नींद से।
अब आपको क्या लगता है जो कुछ बारीक से बारीक बात आप बताती थी वो सब क्या उसने कभी सुनी भी थी। क्या उसने कभी आप पर विश्वास किया भी था या वो हमेशा से ही आपको शक की निगाहो से देखता था और आपको इसकी भनक भी नहीं थी।
यही वो लम्हा होता है जो आपको मजबूर कर देता है सबकुछ शुरू से सोचने को। आपको मजबूर कर देता है रिश्तो की गहराई में ना जाने को ,आपको मजबूर कर देता है रिश्तो को एक नई नज़र से देखने को और भावनाये कम करने को।
आपको अपनी गलतियां नज़र आने लगती है और आप अब यहाँ खुद को चुनती है ना की उसे जिसने आपका पूरा इस्तेमाल किया और गलती भी आपकी बताती।
ऐतबार उठ जाता है नये रिश्तो से।