
दिल्ली से जयपुर और जयपुर से दिल्ली मेरा आना जाना लगा रहता है। पहले मुझे बस से सफर करना अच्छा लगता था। लेकिन समय की बचत और सहूलियतों के चलते मैने रिजर्वेशन ट्रैन से आना जाना शुरू कर दिया।
पिछले 3 सालो से लगातार ट्रैन से ही सफर किया है। लेकिन अभी कुछ दिनों पहले दिल्ली से जयपुर आते वक़्त ट्रैन का रिजर्वेशन ना होने के कारण इमरजेंसी में बस से सफर करना पड़ा और यकीन मानो सफर बहुत लम्बा और हैरान करने वाला था।
सफ़र की शुरुआत तो अच्छी थी लेकिन तब तक जब तक हालात बदलने शुरू नहीं हुए।
मेरा सफर 6 -7 घंटे का लम्बा सफर था। मैने २ सीटर चुनी। टोटल 3 लोगों ने मेरे बगल वाली सीट बदली।
सबसे पहले मेरी हमसफ़र बनी एक औरत। अच्छी थी ,नो डिस्टर्बेंस। शायद एक -डेड घंटे वो मेरे बगल में बैठी थी। उस वक़्त मेरा ध्यान सफ़र को एन्जॉय करना था क्यूंकि मेरे फ़ोन की लीड ने अचानक काम करना बंद कर दिया था। तो अब मुझे सिर्फ खिड़की के बाहर देखना था क्यूंकि बगल वाली ने अपने कानो में लीड लगा ली थी।
इस वक़्त मैने देखा की शहरीकरण कितनी तेजी से बढ़ता है। शब्द पढ़े है बहुत बार लेकिन पढ़ने और खुद अनुभव करने में काफी फ़र्क है। सड़क के नज़दीक सबसे ज्यादा जो बिल्डिंग्स दिखी वो थी होटल्स ,बार और बेहद सूंदर कैफ़े। सड़क तो चार पहियों तक सिमट कर रह गई है। मुँह के नज़दीक और आसमान को छूती बस इमारतें ही थी।
समझ आता है की इकलौता भारत इस वक़्त ऐसा देश है जिसमे जवानों की मात्रा ज्यादा है। इसलिए अब यौंगेस्टेर्स अगर हाथ पकड़ कर चलते नज़र आ भी जाए तो कोई बात नहीं ,दौर इन्ही का है।
पहले जिन रास्तों को मैं सफ़र में अक्सर निहारा करती थी जैसे खुला आसमान ,लहराती फसल ,पशु पक्षी अब ये सब बहुत कम देखने को मिला।
२ घंटे के सफर के बाद एक आदमी मेरे बगल में आकर बैठा। दिखने में ठीक ठाक। लेकिन मैं फिर भी अलर्ट हो गई। तक़रीबन १५-२० मिनट बाद उस ठीक ठाक दिखने वाले आदमी ने अपनी हरकतें करनी शुरू की। जैसे की फ़ोन मे तेज आवाज़ में गाने चला लिए लेकिन ठीक है मैने कुछ नहीं कहा ,अपने हाथो को कभी आगे कभी पीछे करता जिससे की उसके हाथ कभी मेरे हाथो के या सीने के पास लगने लगे। मैने खुद को और संभाला ,लेकिन अब उसने अपनी टांगो को चौड़ी करना शुरू किया। धीरे धीरे उसने अपनी टाँगे इतनी फैला ली की मैं बहुत ही कम जगह में सिमट गई। अब मैने कुछ करने का और बोलने का फैसला किया। मैने जोर से उसकी टांगो को धक्का मारा और कहा की सीट के इस तरफ आपका हाथ या पैर गलती से भी आ गया तो मैने इन्हे तोड़ देना है। इतना सुनते ही उसने अपने आपको इतना समेट लिया की अगले 2 घंटे तक उसका मेरे बगल में होना ना होने के बराबर था।
सच कहती हु ये लोग हम लड़कियों या औरतों का मूड ही नहीं आत्मा भी खराब कर देते है। जी चाहता है इनमे सीधे गोली काड दे।
ये 2 घंटे मेरा ध्यान मेरे सफर से ज्यादा खुद को सुरक्षित करने में था।
इस हरामखोर के उतरने के बाद एक लड़का आकर बैठा। मैं फिर से अलर्ट हो गई। लेकिन मैने ध्यान दिया ये बंदा पहले ही मुझसे दूरी बनाकर बैठा था। खुद को संभाल कर तरीके से। ये देख कर मुझे तसल्ली हुई की शुक्र है भगवान् का ठीक बंदा है। मैने सीधे तो इसकी शकल देखि नहीं लेकिन इसके व्यवहार ,फ़ोन कॉल्स और फ़ोन अप्प्स स्क्रॉलिंग से लगा जवान लड़का है। हाँ मुझसे तो जवान ही था। इस हमसफ़र के दौरान मैं तसल्ली से सो पाई। जब मैं उठी तो इसके उतरने की बारी आ गई थी और मेरा सफर अब 1 घंटे का रह गया था। इस बन्दे के उतरने पर मैने इसे खिड़की से देखना चाहा और मैं हैरान रह गई की उसने उतरते ही मुझे देखा और अलविदा कहा। मैने आगे पीछे देखा शायद मुझे नहीं किसी और को कहा हो लेकिन उसने इशारे कर मुझे फिर अलविदा कहा और मैने भी मुस्करा कर उसका अभिवादन किया। वो बहुत ही हैंडसम था ,सच में।
अब क्यूंकि मैं अपने शहर में तो आ गई थी तो बाकी का समय पूरे सफर को याद करते और सोचते विचारते निकल गया।
सिर्फ़ उस घटिया आदमी की वजह से अपने सफर को स्पोइल का नाम नहीं देने वाली। सफर शानदार था। अंत में सफर का परिणाम अच्छा ही निकला।
सीख – अगर पार्टनर अच्छा है तो सफर कैसा भी हो, नतीजा शानदार होगा।
सफ़र पूरी ज़िन्दगी का हो या एक छोटी सी यात्रा अनुभव हर जगह मायने रखते हैं। हमेशा से आसान तो कुछ नहीं होने वाला तो सफ़र की तैयारी करके रखनी चाहिए।
2 thoughts on “आपको क्या लगता है की सफर कैसा होना चाहिए ,अनुभवों से भरा या आसान ?”